कांकि कोच्छ लौक तां किही कि, “ओचीया चिठ्ठीया तां कठिन ते असरदार छी, ते जिसे बेले ओ आप आवे तां ओचे शरीर कमजोर लाग़े ते ओची ब़ोलणे ची ताकत ना चे बराबर छै।”
कांकि मनु ङर छै कि, कङी इसड़े ना हो कि, मैं आती कर जिसड़े चाहवे, उसड़े तम्ही ना लाभा, ते मनु वी जिसड़े तम्ही ना चाहवा उसड़े ही ङेखा कि, तम्चे मां झग़ड़ा, डाह, गुस्सा, विरोध, ईर्ष्या, चुग़ली, अंहकार ते व्यवस्था ठीक ना हो।
ऐह वजह कनु दूर हुते हुले वी मैं तम्हानु ईं सब लिखे पला, कि ओठे मौजुद हुवणे उपर मनु प्रभु चे जरिये ङिला गेला अधिकार चा प्रयोग कठोर भाव लारे ना करना पड़ो। ऐ अधिकार चा मकसद बढोतरी करनी छै, ना कि नाश करने कोनी।