मैं हा विनती करे पला कि, तम्चे सामणे मनु बेधड़क हुती कर हिम्मत ना करनी पड़ो, जिसड़े मैं कितना उपर जको अम्हानु संसारिक रीति चे अनुसार चलणे आले समझी, मनु कठोरता ङिखाणने चा विचार आवे पला।
कांकि मनु ङर छै कि, कङी इसड़े ना हो कि, मैं आती कर जिसड़े चाहवे, उसड़े तम्ही ना लाभा, ते मनु वी जिसड़े तम्ही ना चाहवा उसड़े ही ङेखा कि, तम्चे मां झग़ड़ा, डाह, गुस्सा, विरोध, ईर्ष्या, चुग़ली, अंहकार ते व्यवस्था ठीक ना हो।