इसलै मैं जो जौ इच्छा करो रहों, तौ का मैं चंचलता दिखाओ? या फिर जो करनो चहात रहों का सरीर के अनुसार करनो चाहथौं, कि मैं बातन मैं “हाँ, हाँ” करौं; और “ना, ना” भी करौं?
लेकिन जोमैं करथौं, बहे करत रैहंगो; कि जो “प्रेरित” दाँव ढूँड़थैं, उनकै मैं दाँव मिलन नाय देमौं, ताकी जो बात से बे घमंड करथैं, बामै बे हमरे बराबर माने जामैं।
मैं मूर्ख तौ बनो, लेकिन तुम्हईं मोकै जौ करन ताहीं मजबूर करे। तुमकै तौ मेरी बड़ाँईं करनो चाहिए रहै, अभै मैं कछु नाय हौं, लेकिन मैं बे खास लोगन के ताहीं कोई भी तरह से नीच ना हौं जो तुमरे “प्रेरितन” के ताहीं है।