पर परमेस्वर को गोस्टी उनको भीतर सदा को लाई जड़ नही धरयो। वय जरा सो दिवस लाई रव्हसेत; येको मंघा जबा गोस्टी को काजी लक उन पर मुसीबत आवासे ता वय ठोकर खावसेत।
परमेस्वर उनको डोरा लक हरेक आँसू पोछ देहे। अता लक मिरतू पायो न जाहे। अता ना कलपनो, ना रोवनो अना नाच कोनी दरद रहेत। काहेकि जो पहली गोस्टी होतीन, अता वय नही रहीन।