“हे पिरभू कोन तोरो लक नही भेव मानहेत? अना तोरो नाव को बड़ाई नही करेत? काहेकि तुच केवल एक पवीतर से, अना सबरो लोक गीन आयके तोरो पूजा नहि करहेत, काहेकी तोरो नियाव को काम दिसाय गयो सेत।”
पर ओना मोरो लक सांगीस, “चौव, असो नोको कर! काहेकि मि तोरो अना तोरो भाऊ भविस्यवक्ता गीन, अना ऐना किताब को गोस्टी ला मानन वालो को संगी दास सेउ। परमेस्वर च ला नमस्कार कर।”
ऐना चारो जीवधारी मा लक हरेक को सह-सह पंख होतीन। उनको चारो कना, अना भीतर डोराच डोरा होतीन। दिवस अना राती बिना रुकयो यो गावत होतिन। “पवीतर पिरभु परमेस्वर सब लक ताकत वर से, जो होतो, अना जो से अना जोन आवनवालो से।”