तब परमेस्वर को मंदिर जोन सरग मा से, उघाड़ दियो गयो। अना ओनो मंदिर मा उनको करार को संदूक दिसयो। ओना बेरा बिजली कौन्धी, गड़गड़ाहट अना बादल को गरजन हुयो। एक डरावनो भुईडोल आयो, अना मोठो-मोठो ओला पड़िन।
मंग मीना एक बादल लक आवाज आयको। एक मोठो नद्दी को अवाज जसो होतो, या घनघोर मेघ गरजन को वानी होतो। जोन आवाज मीना आयको होतो। वा लगत सो बीना एक संग बजासेत जसो अवाज होतो।
मंग मिना एक मोठयो सागर को जसो सब आयकयो जोन लगत मोठयो पुरा को अवाज अना बादल गरजन को अवाज जसो होतो। लोक गावत होतिन। “हल्लिलूय्याह! वोको जय हो, काहेका आमरो पिरभू परमेस्वर! सबलक बलवान राज कर रहयो सेत।”
ऐना चारो जीवधारी मा लक हरेक को सह-सह पंख होतीन। उनको चारो कना, अना भीतर डोराच डोरा होतीन। दिवस अना राती बिना रुकयो यो गावत होतिन। “पवीतर पिरभु परमेस्वर सब लक ताकत वर से, जो होतो, अना जो से अना जोन आवनवालो से।”
मंग मिना चोवयो, जोन सिघासन मा बसो होतो, ओको उजो हात मा एक पावती मजे एक असो किताब जिनला लिख के लपट देत होतिन। जोन मा भीतर बहेर लिखी हुयी होती। अना सात सिक्का लगायके बंद करी गयी होती।
जब वोना उ पावती ले लियो, ता उन च्यार जीव अना चौबीस बुजरुक ना पाठी ला पाय पड़के परनाम करीन। उनमा लक हरेक को जवर बिना होतो। अना वय सुगन्धित चीज लक भरयो सोन्नो को धूपदानी राखयो होतिन। जोन संतगिन को पिराथना होतो।