काहे का ऐना लोकगीन ला “अक्ल मा गोटा” पड गयी सेत ज्यादा आयक सेत, इनना डोरा बंद कर लईसेत कदी असो न होहे, का वय डोरा लक चोवके, अना कान लक आयक के; मन मा समज लेहेति, अना बदल जाय अना, मि उनला साजरो करू।
काहे की मि तुम लोक गीन कव्हसु, की अदी तुमरो नेकी को काम, मोसे को नियम को गुरू लक अना, फरिसी गीन लक बड़के नही होहेत। ता तुम्हि सरग को राज मा कदीच भीतर नही धस सकेत।
जबा तुम्हि पिरथना करने, ता बगला भगत को जसो नोको करने। कासेकी लोकगीन ला चोवन लाई, पिराथना घर मा अना रास्ता, चौगड्डा मा ऊभा होयके, पिराथना करनो, चहेतो लगासे, मी तुम्हिला खरो सांगासू, का वय अपरो करनी को फर पाय लेहेत।
एकोलाय का “वय डोरा लक चोवयेत पर, उनला सुझाई नही पड़हेत, अना वय आयकेत, पर समझ मा नही आहेत, कही असो ना भई जात का वय परमेस्वर को कन मुड़ जाहेत, अना परमेस्वर उनला छिमा कर देहेत।”
मंग वोको लक सांग्यो मी तूमी लक खरो-खर सांगसू का, “तुमी सरग ला उघड़ो हुयो अना परमेस्वर को सरगदूत गिनला वरता जातो अना मानूस को टूरा ला खाल्या उतरतो चोवने।”
अना उनको आतमा ला अडिग करके बिस्वास मा बनयो रव्हन लाय यो सांगके सिकायो का अमिला मोठयो दुख झेल के परमेस्वर को राज मा धसनो सेत, मंग वय लुस्तरा मंग इकुनियुम अना अन्ताकिया नगर ला लवटके आइन।
काहेकि एना लोकगीन को मन जड़ता लक भर गयो। अना इनको कान कठनाई लक आयक सेत। अना इनको डोरा बंद कियो गयो सेत। काहेका कही असो ना भई जाय, का वय आपरो डोरा लक चोवे, अना कान लक आयकत, अना उनको मन लक समझेत, अना कदी मुरक जाय, “अना मी उनला साजरा कर देउ।”