18 अबा मी उठके, ना आपरो बाबूजी को कठा जाहू, अखीन वोको लक सांगू, का बाबूजी मी ना सरग को विरोध मा अखीन तोरो विरोध मा पाप करीसेव।
उनना आपरो-आपरो पाप ला मानके यरदन नदी मा ओको लक बप्तिस्मा लेईन।
एकोलाय अदी तुमी मानूस को अपराध ला छिमा करने , ता तुम्हरो सरग को परमेस्वर बाबूजी भी तुम्हिला छिमा करेत।
एकोलाय तुम्हि लोक गीन असो रित लक पिराथना करने, ओ आमरो परमेस्वर बाबूजी तू जोन सरग मा सेव तोरो नाव पवीतर मानो जाय।
अता जबा तुमी बुरो होयके, आपरा लेकरा ला साजरी चीज देवासो, ता तुमरो सरग को परमेस्वर बाबुजी आपरो माँगन वालो ला साजरी चीज काहे नही देहे?
वोना कव्हयो जबा तु पिराथना करने, तो असो कव्हने, हे, आमरो बाबूजी तोरो नाव पवीतर मानो जाहेत, तोरो राज आहेत।
जबा उ एक दिवस सोचन लग्यो, मोरो बाबूजी को घर मा कितरो बनिहार सेत, उनला भरपेट जेवन भेटासे अखिन मी भूखो मर रहीसेव।
अबा मी तोरो टूरा कहलान को, काबील नहिसेव, अबा मोला आपरो एक बनिहार जसो राखले।
तबा टूरा ना वोला कव्हयो, बाबूजी मी ना सरग को विरोध मा अखीन तोरो नजर मा पाप करीसेव। अबा मि यो लायक नही सेव, का तोरो टूरा कहलाउ।
जमा वसूली करन वालो, पापी अधिकारी काही दूहुर मा उभो होतो, वोला सरग कना, डोरा उठानो तकन को हिम्मत नही होतो। उ आपरो छाती पीट-पीट के ना कव्हत होत्यो, “परमेस्वर मोरो पर दयाकर।”