18 अखीन वोना सोचीस का घर मा ढोला गिनला तोड के उनला मोठी बनाके ना वहान गँहु ठे देहू।
बादल का पकसी ला चोवो। वय ना ता बोवासे, ना च कापासे, अना ना च खरीयान मा जमा करासेत, मंग उनको सरग को परमेस्वर बाबूजी उनला खिलावासे। का तुम्हि उन लक लगत कीमती नही सेव?
तबा उ आपरो मन मा विचार करन लग्यो फसल राखन काजी अता मी काजक करु?
तबा मि आपरो मन ला सांगू, “हे मोरो मन, तोरो जवर लगत बरस को साठी लगत सी जायदाद राखीसे। सुख मनाय अना जेवन कर, खुसी मनाव।” साजरो-साजरो रव्हो अखीन चैन लक जिंदगानी करेत।
जोन मानूस आपरो काजी धन जोड़ासे वा यो मुरख जसो सेत, परमेस्वर को नजर मा कोनी धनी नहात।
कावरा पर ध्यान देव! वा ना बोवासे ना कापासे ना कोठी मा ठेवासे तबा भी परमेस्वर वोला पालासे तुम्ही कावरा अखीन पंखेरु ला बढ़के सेव।
काही बेरा तकन उ नही मानिस, पर आखीर मा मन मा बिचारन लगीस, का मोला ना तो परमेस्वर को भेव से ना ता कोनी लोकगीन को भेव सेत।
यीसु पिरभू कव्हसे, आयको! यो अन्यायी न्यायी का कव्हसे?
पर असो गियान ता सरग लक नही आयेव से पर यव ता संसार को से, यव ता परमेस्वर को नाहती पर सैतान को से।
तुमी जोन यो कव्हसेव आज नही त काल हमी अखीन कोनी नगर मा जायके वहान एक बरस बितावबो अना धन्दा करके कमावबो।
एको विपरीत तुमला असो कव्हनो चाव्हसे का अदी पिरभु चाहे त हमी जित्तो रहबो अना उ काम भी करबीन।