18 दारू ला पीवके बोलनवारा ना होवने, काहेकि एको लक लुच्चाई होवासे, पर एको उलट आतमा लक भरजाव।
अरे कपटी मोसे को नियम को गुरू अना फरिसी गीन, तुमरो पर धिक्कार से तुमी बटकि अना भानी ला ओरिया-ओरिया, साजरो लक माजासेव, पर तुमरो भीतर हिन्सा अना सुवारत सेत।
अना आपरो संगी नौकर गिनला मारन लगे। अना बेवडा को संग जेवन अना पीवन लगे।
काहे का उ पिरभु को पुढ़ा, मा महान होयेत। अखीन अंगूर को रस, अर दारु, कभी नही पिहेत। अखीन उ आपरो माय को पोट लक, पवीतर आतमा लक भरो होयेत।
अता जबा तुम्ही बुरो होयके, आपरो लेकरा बारो-ला, साजरो चीज देवनो जानासो, तो सरग को बाबूजी, परमेस्वर आपरो मांगन वालो ला, पवीतर आतमा काहे नही देहेत।
पर उ दास असो मन मा सोचन लगे, का मोरो मालीक ला आवन ला उसीर सेत, अना नौकर बनिहारिन ला मारन पीटन लगे, अना नसा बाजी एसो अराम करन लगेत।
एकोलाय होसियार रव्हने, असो ना होहेत एने जीवन को, भोग-विलास, नसा-पानी अना संसार को, चिन्ता मा तुमारो मन लग जाहेत, अना एकदम वोना दिवस जाल जसो आ जाहेत।
“हर कोनी मानूस पुढा निट-नाट अंगूर को रस देवासे, अना जबा लोकगीन को जिव भर जासे तबा फिको देवासे, पर तुना अबा लक निट-नाट अंगूर रस बचाय राखिसेस।”
कायका उ साजरो मानूस होतो, अना पवीतर आतमा अखीन भरोसा मा “लबा लब भरो होतो।” अना दुसरो लगत सा लोकगीन पिरभू मा मिल गईन।
आमी दिवस को लक खरो चाल-चलबिन। आमी रगिलोपन नसा पानी गन्दोकाम, अना छिनालापन जलन अना देह को वासना झगड़ा-रगडा लक दुहुर रव्हबिन।
काहेका हरेक मानूस सटाकनारी आपरो-आपरो जेवन करन ला बस जावा सेत। असो कोनी खाली पोट अना कोनी भरपेट जेवन करा सेत। अना कोनी लगत पी डाकसेत।
पर मिना सहीमा, यो लिखि सेव का, अदी कोनी मसीह भाऊ कहलावा से, अना छिनरापन, लालची, मुरत पुजा करनवालो, सिवा देवनवारा, बेवड़ा, लुटेरा, होहे ता वोको सगंति नोको करा जोस। पर असो मानूस को संग, जेवन नोको करा जोस।
न तो चोर, बेवड़ा, न सीवा देवन वालो, ना तो लुट-खसोट करन वालो, परमेस्वर को राज को वारिस होहेत।
काहेकि जोन सोवासेत वय रात मा सोवासेत अना जोन नसा मा रहवसेत वय रात मा नसा मा होवासेत।
जोन निरदोस अना एकच बायको को नौरा होय, जिनको लेकरा बिस्वास करनवालो होहेत। अना उनमा लुच्चापन अना बे लगाम नोको होय।