धन्य सेत वय दास जेनला वोको मालीक को आवनो पर जागतो मिल्हेत, मी तुम्ही लक खरो कव्हसू, मालीक उन ला पूरी तैय्यारी को सँगा जेवन लाय बसाहे, अना जवर आयके उनको सेवा करहे।
अना पिरभू को एक सरगदूत एकाएक परगट भयो अना वोच जेल को खोली मा उजाडो भयो, अना ओना पतरस को पसली पर हात मारके ओला जगाईस अना साँगीस, “सटाकनेरी उभो होय!” अना वोको हात लक हतकड़ी पड़ गईन।
उ बाहेर हिटके अना वोको मंघा-मंघा चलतो गयो पर वोकी समझ मा यो नही आय रहयो होतो, का जोन काही सरगदूत कर रहीसे उ खरो मा से! पर वोना सोचीस का मी कोनी सपना चोय रहीसेऊ।