लोक खुदच हमला सांग सेत का तुमरो कन हमरो कसो मान भाव भयो अखीन तुमी कोनो पिरकार देव-मुरती ला छोड़के परमेस्वर को कन फिरयो सेव जेनको लक तुमी खरो अना जित्तो परमेस्वर को सेवा मा बनीसेव।
काहेका आमी पुढ़ा बेअक्ल का रहत होता अना हुकूम ला नही मानत होता अना संका मा पड़या रव्हत होता। अना काई परकार को लोभ अना सुख सुविदा को चाकरी करत होता अना बइर, अना जरनाहि मा जिंदगी बितावत होता। अना आमी लक लोक घिरना करत होतीन अना आमी भी एकमेक लक घिरना करत होतो।
काहेकी तुमी जानासेव, का तुमरो बेकार चाल-चलन, जोन बापदादा गीन लक चलतो आयो से। उनको तुमरो सूटकारा, चांदी सोनो अना नास होवनवालो चीज गीन को किमत मा नही भयो।
काहेका गैरबिस्वासी लोकांगिन, को इक्सा अनुसार काम करन्यात अना मोह, दारुखोरी, नसा, छिनालापन, अना घिरना लायक मूर्तिपूजा, वाईट इक्सा को बिचमा लगत बेरा गवायो, यो लगत भयो।