31 माणहु तीहया आंदळा ने होगा री जावो करीन वड्या, पण तीहया अळी बी ज्योरेत आड़ीन केदा, “मालीक! दावुद नी अवल्यात! अमारी पोर गीण कर।”
तीहयी टेमे माणहु आह़फा-आह़फाम ना सोरा-सोरी ने ईसुन्तां आनीन करते लाया के तीहयो तीमनी पोर हात मेलीन वीन्ती करे करीन, पण सोरा ने ह़ु करवा लाय र्या करीन तीना चेला माणहु ने वड्या।
पण ईसु तीने कंय नी केदो। अने ईसु ना चेला ईसुन्तां आवीन वीन्ती कर्या, हीनी वात मानीन हीने वळाय दे, काहाके हीय्यी आड़ती-आड़ती अमारी पसळ आय री।
जत्यार ईसु तां गेथो अगो ज्यो, ता बे आंदळा ईसु पसळ आसम आड़ता जाय्न चाल पड़्या, “ए दावुद नी अवल्यात, अमारी पोर दया कर।”
अने तां ह़ारीक रोहा धेड़े बे आंदळा बह र्या हता। जत्यार तीहया आहयु ह़मळ्या के ईसु तीमनी अगळ माय्न जवा बाज र्यो, ता तीहया आड़ी-आड़ीन केवा बाज ज्या, “ए मालीक! दावुद नी अवल्यात! अमारी पोर गीण कर।”
ईसु उबो रीन तीमने बोलायो अने केदो, “तमने ह़ु जोवे? मे तमारी जुगु ह़ु करु?”