15 “मालीक! मारा सोरा पोर गीण कर। हीने फेपरु आया करे। हीय्यो घण-जबर वेला कर्या करे; अने वळ-वळीन आक्ठु मे अने पाणी मे पड़ जाय।
अने आखा सीरीया देस मे ईसु नी खबर फेल जी। माणहु फेपराळा माणहु ने, लखवा हयला माणहु ने अने एवा कंय भाती ना मंदवाड़ वाळा ने दुख मे पड़ला माणहु ने अने भुत लागला माणहु ने ईसुन्तां लावता हता अने तीहया आखा ने आरगा करतो हतो।
तीहया परगणा नी कनानी जाती नी एक बयर आयी अने आड़ी-आड़ीन केवा बाज जी, “ए मालीक! दावुद नी अवल्यात! मारी पोर गीण कर। मारी सोरी ने भुत घण-जबर वेला पाड़ र्यो।”
मे हीने तारा चेलान्तां लावलो, पण तीहया हीने आरगु नी कर सक्या।”