31 ईसु तत्यारुत तीने हात अगो करीन धर लेदो, अने केदो, ए कम भरह्या! तु सण्का काहा कर्यो?
ईसु तीमने केदो, ए, वण-भरह्या! तमु एतरी जबर ह़ुका बीही र्या? अळतेण तीहयो आंजी अने पाणी ने वड्यो अने आखु धीरु पड़ ज्यु।
ईसु तीमने केदो, तमारी पांह भरहो कमतो से; एतरे तमारी सी भुत नी नीकळ्यो। मे तमने ह़ाचलीन केम, कदी तमारो भरहो राय ना दाणा बराबर बी हतो, ता तमु आहया बड़ा ने बी केता के आञे गेथो ह़रकीन सेटो हय जा, ता आहयो बड़ो बी ह़रकीन सेटो हय जतो; अने तमारी जुगु कंय बी नी हय सके ईसम नी रेतु
ईसु तीमना वीच्यार जाणीन तीमने केदो, “ए कम भरह्या! तमु आहयु काहा वीच्यार कर र्या, के ‘आपणु रोट्ला नी लाया, एतरे आहयो आसम केय?’”
एतरे जत्यार भगवान चोवगान ना चारा ने, जे आज से, अने काले आक्ठा मे नाख देहु, एवा लुगड़ा पेरावे, ता ए वण-भरहा वाळा, तमने तीहयो काहा नी पेरावे?
पण तीहयो ज्योरे आवत्लु वाहळु देखीन बीह ज्यो, अने तत्यारुत पाणी मे डुबवा बाज ज्यो, अने आड़वा बाज ज्यो, “ए मालीक! मने बचाड़।”
जत्यार तीहया ढुंड्या मे चड़ ज्या ता वाहळु थांग ज्यु।