दो दिन को बाद म फसह अर अखमीरी रोटी को तिहार होन वालो हतो रह। बड़ा पुजारी अर सासतिरी या बात की ताक म पड़िया हता कि ओखा कसो छल-कपट को संग म पकड़ ख मार ड़ाले;
ओ ना हमरी जात को संग कपटी मन से बर्ताव करयो, अर हमरा बाप-दादा हुन पा अत्याचार करयो। ओ ना हमारा बाप-दादा हुन ख इत्तो मजबुत करयो कि वी अपना छोटा-छोटा पोरिया-पारी ख बाहर फेक देनो चाहिए, जसो वी जिन्दा नी रह सकन का।
पर मी डरु हैं कि साँप न अपनी चलाकी से हवा ख बहकायो, वसो ही तुमारा मन हुन वा सीधाई अर सुध्दता हुन से जो मसी ख संग होनू चाहिए, असो नी कि भ्रस्ट नी कियो जाहे।