सही हइ हबै कि ई घर हे रहत भरमा हम भार हे दबे हर दुख हे रथन, काखे हम चाहथन कि हम बिना कपडा के नेहको रही, पय कपडा पहिरी कि जउन कुछ सारीरिक हबै ऊ जीवन के निरवाह बन जाय।
हर मेर के पराथना बिनती अउ निबेदन सहित आतमा के मदद लग हर मउका हे पराथना करत रहा, हइ लक्छ लग सगलू मेर के परयास करत रहा सचेत रहा, अउ सगलू पवितर सेबकन के निता पराथना करा।