काखे संदेस हे हइ दरसाय गय हबै, कि भगवान मनसे के अपन जसना सही कइसन बनाथै, हइ सुरु लग आखरी तक बिस्वास हे टिके हबै, जसना कि किताब हे लिखे हबै, धरमी मनसे बिस्वास लग जिन्दा रही।
इहैनिता जेतना मनसे नियम के कामन हे बिस्वास करथै, ऊ सगलू सरापित के बस हे हबै, काखे लिखवरे हबै, “जउन कउ नियम के किताब हे लिखवरे सगलू बातन के नेहको मानथै, ऊ सरापित हबै।”
तब फेर मूसा कर नियम काखे दय गय हबै? ऊ ता अपराधन के कारन बाद हे दय गइस कि बिरादरी के आमै तक रहै, जेही टीमा दय गय रथै अउ ऊ स्वरगदूत के दवारा अक्ठी बीचबचाव ठहराय गइस।
ओखर मुंह लग अक्ठी बोहत चोंख तलबार निकडिस कि ऊ ओखर लग देस के नास करै, ऊ लोहा के राजदंड लग उनखर राज करही, ऊ सर्वसक्तिमान भगवान के गुस्सा के जलजलाहट के अंगूर कर रस कुन्ड राउंदही।