16 अउ जउन गोरू अउ दस सींग तै देखे हबस, ऊ गलत काम लग घिनइहिन, उके बिना फरिया के अकेल्ले छांड दइहिन, ओखर मांस खइहिन अउ उके आगी हे जराय दइहिन।
तब उहै टेम स्वरग हे दूसर चिन्हा दिखथै अउ अक्ठी लाल रंग के बोहत बडा पोखडी बाले अजगर सपुवा, ओखर सातठे मूड रथै, दस सींग रथै अउ हर अक्ठी के मूड हे अक्ठी मुकुट रथै।
फेर छठमा स्वरगदूत अपन खोरिया फरात महानदी हे कुढाय देथै अउ ओखर पानी सुखाय गइस, जेखर लग पूरुब दिसा के राजा के निता रास्ता तइयार हुइ जथै।
ऊ सातठे राजो हबै, पांच तो मर चुके हबै, अक्ठी अबहुन जिन्दा हबै अउ अक्ठी अब तक नेहको आइस जब ऊ आही, पय ऊ चुटु टेम के निता आही।
फेर उन अपन मूड हे धूर डालत अउ रोउत कथै, “हे महानगरी, हाय-हाय जेखर पइसा के दवारा समुन्दर के सगलू नाह जिहाज बाले मालिक धन्नड हुइ गय रथै, पय अब तै घंटा भर हे सगलू खतम हुइ गइस।”
इहै कारन अक्कै रोज हे ओखर उप्पर परेसानी आ पडही, मतलब महामारी, दुख अकाल, अउ उके आगी हे जराय दय जही, काखे सक्तिमान हबै परभु भगवान जउन ओखर नियाव करही।
तुम राजा, सिपाही, सूरबीर, घोडवा, घुडसबार अउ सगलू मनसे के, चाहे ऊ आजाद होय या सेबक होय, नान होय, या बडा, हरवाह मांस खा।”