1 तब मै स्वरग हे अक्ठी बडा अउ चकित चिन्हा देखो, जउन सात स्वरगदूत सात आखरी परेसानी लय हर रथै, हइ आखरी परेसानी हबै, काखे इनखर दवारा भगवान के गुस्सा पूर हुइ जथै।
ता उके भगवान के गुस्सा के दारू पिलाय जही, जउन बिना मिच्चर के ओखर गुस्सा के खोरिया हे कुढाय गय हबै अउ ऊ पवितर स्वरगदूतन अउ गेडरा के आगू आगी के बोहत पीरा हे डाल दय जही।
ओखर मुंह लग अक्ठी बोहत चोंख तलबार निकडिस कि ऊ ओखर लग देस के नास करै, ऊ लोहा के राजदंड लग उनखर राज करही, ऊ सर्वसक्तिमान भगवान के गुस्सा के जलजलाहट के अंगूर कर रस कुन्ड राउंदही।
बचे हर मनसे, जउन हइ महामारी लग नास नेहको होय रथै, अपन हाथ के कामन लग मन नेहको फिराइन, उन परेत अउ सोना, चांदी, पीतर अउ लकडी के उन मूरती के पूजा करथै, जउन न तो देख सकथै अउ न सुन सकथै अउ न चल सकथै।