18 तब बेदी लग अक्ठी अउ स्वरगदूत आइस, आगी हे ओखर हक रथै, ऊ स्वरगदूत लग बोहत आरो लग कथै, “अपन चोंख हंसिया चलायके भुंइ के पूर अंगूर के फसल के गुच्छा अकजुट के काखे अंगूर पक चुके हबै।”
जब दाना पक जथै, ता किसान काटै के निता हंसिया के निस्तार करथै।
फेर मोके बेदी लग हइ आरो सुनाई देथै, “हां, हे सर्वसक्तिमान परभु भगवान तोर नियाव सही अउ धरमी हबै।”
फेर चउथा स्वरगदूत अपन खोरिया बेरा हे कुढाय देथै, इहैनिता उके मनसेन के आगी लग जला देय के हक दय गय रथै।
तब दूसर स्वरगदूत, सोना के धूप लइके आथै अउ बेदी के आगू ठाढ हुइ गइस, उके बोहत धूप दय गय रहै, जेखर लग ऊ उके सगलू पवितर सेबकन के बिनती के संग राजगद्दी के आगू बाले सोना के बेदी हे चढाय।