लुदिया नाम के थुआतीरा सहर के बैगनी कपडा बेचै बाले अउ भगवान कर आराधना करथै, ऊ डउकी हमर बात सुनत रथै। परभु ओखर मन के दूरा खोलथै कि ऊ पोलुस के बातन हे मन खुसी लग सुनै।
जब सात बादर के गरजन बोल चुकथै, तब मै लिखे के निता तइयार रथो, पय मै स्वरग लग हइ आरो सुनो, “जउन कुछ सात बादर के गरजन कहे हबै, उके झइ लिख पय सील बन्द के देया।”
मै स्वरग लग अक्ठी आरो हइ आदेस देत सुनाई देथै, “लिख, धन्य हबै।” ऊ मिरतू, जउन अब लग परभु हे बिस्वास करत मरे हबै, आतमा कथै, “असनेन होय, ताकि ऊ अपन मेहनत के बाद आराम के सकै, काखे उनखर निक्खा काम उनखर संग हबै।”
पय तुम थुआतीरा के बचे हर मनसेन लग जेतका हइ सिक्छा के नेहको मानथै अउ उन बातन के जिनखर भुतवा के गहिड बात कथै नेहको जानथै, हइ कथै कि मै तुम्हर उप्पर अउ बोझा नेहको डालहुं।
“यीसु कथै, मै मंडली के बारे हे हइ बात परगट करै के निता अपन स्वरगदूत के तुम्हर लिघ्घो पठोय हव, मै दाऊद के बडा वंसज अउ लरका यहों अउ मुरगउसा के चमकत तरइया हबो।”
सरदीस के मंडली के दूत के हइ लिख, जेखर लिघ्घो भगवान के सातठे आतमा अउ सातठे तरइया हबै, ऊ हइ कथै कि मै तोर कामन के जानथो, मनसेन के कहेका हबै कि तै जिन्दा हबस पय सही हे तै मरे हर हबस।