35 न भुंइ के काखे ऊ ओखर गोड के चउकी हबै, न यरुसलेम के काखे ऊ महाराजा के सहर हबै।
अउ न अपन मूड के किरिया खइहा, काखे तै अकोठे चूंदी के चरका अउ न करिया कर सकथस।
परभु कथै, स्वरग मोर राजगद्दी हबै, अउ भुंइ मोर गोड के पिढवा हबै, कउन मेर के तुम घर बनइहा? अउ मोर सुत्ताय के जिघा कछो होही?
तब मै आतमा के वस हे हुइ गयों, स्वरगदूत मोके बडा डोंगर हे लइ जाके पवितर सहर यरुसलेम के देखाइस, ऊ स्वरग लग भगवान के इहां लग उतरथै।
अउ फेर मै पवितर सहर नबा यरुसलेम के स्वरग लग, भगवान के लिघ्घो लग उतरत देखथो, ऊ अपन दुलहा के निता सजाय हर दुलही के जसना सजे रथै।