इहैनिता मै तुमही गुठेथो, कि मै तुम्हर लिघ्घो ग्यानी मनसे अउ दिमाक बाले अउ गुरू के पठोहूं, तुम उन मसे कुछ के मार डरिहा अउ बोहतन के क्रूस हे टंगइहा अउ कुछ के अपन मंडली हे कोडा मरिहा अउ सहर-सहर हे मारत फिरिहा।
पय ई बातन के आगू ऊ मनसे तुमही बन्दी बना लइहीं अउ सतइही, ऊ तुम्हर उप्पर अधिकार के आदेस चलाय के निता तुमके मंडली दरबार हे दइ देइही अउ फेर मोर नाम के कारन ऊ तुमही, राजा अउ राजपालो के आगू लइ जइही।
तुमके जउन परेसानी भोगै के होही ओखर लग झइ डर, भुतवा तुम्हर परिक्छा लेय के उदेस्य लग तुम्हर मसे कुछ मनसेन के जेल हे डाल देही अउ तुम दस रोज तक परेसानी हे पडे रइहा अउ जब तक तुम्हर मिरतू न आय जाय तब तक बिस्वास ओग हे बने रइहा अउ मै तुमके जीवन के मुकुट परदान करिहों।”
मै हइ जानथो कि तै उहै रथस जिहां भुतवा के राजगद्दी हबै, तउभरमा मोर नाम के परति तोर सच्चाई हे बने हबै अउ तै मोर परति अपन बिस्वास के कबहुन नेहको नकारे, ऊ टेम जब मोर गवाह मोर बिस्वास के काबिल अन्तिपास के तुम्हर सहर हे जिहां भुतवा के घर हबै, खून के दय गइस।
मै उके जबाब दयों, हे परभु, तै तो जानथस अउ उन मोर लग कहिस, “हइ ऊ मनसे हबै, जउन बडा दुख मसे निकड के आय हबै, इन गेडरा के खून हे अपन खुरथा पइजामा धोय के चरका के लय हबै।