“हे ढोंगहा गुरू अउ फरीसी तुमही लानत हबै, तुम मनसेन के निता स्वरग राज कर दूरा के बन्द करथा, न खुद ओहमा घुसथा अउ न उनही जाय देथा, जउन जाय के निता परयास करथै।”
नियाव के गुरू मनसे लग चेतन्त रइहा, उनके लम्बा-लम्बा खुरथा पइजामा ओढ के फिरै के निक्खा लगथै, ऊ बाजार हे मनसेन लग नमस्ते लेत फिरत हबै, उनके सभा सम्मेलन हे आगू के जिघा अउ दावत हे निक्खा जिघा पसंद करथै।