29 अउ फेर जब ऊ बैतफगे अउ बैतनिय्याह हे ऊ डोंगर के लिघ्घो पहुंचथै, जउन जैतून के डोंगर कहाथै, ता ऊ अपन दुइठे चेलन के ई बात गुठेके पठोथै।
ता यीसु उनही छांड के यरुसलेम नगर के बाहिर बैतनिय्याह गांव छो कढ जथै अउ उहैं रात गुजाडथै।
जउन गांव तुम्हार आगू हबै, उहां जा जसना तुम उछो पहुंचिहा, ता उहां तुमही गदहा के अक्ठी, लरका खुट्टा हे बधररे हर मिलही, जेखर उप्पर कउनो मनसे कबहुन सवार नेहको करे होय, उके छोर के हइछो लग आनबे।
अउ जब यीसु जैतून के डोंगर के तरी छो पहुंचथै, ता चेलन के केतका भीड उन सगलू चकराय के काम के जउन उन देखथै, ऊ बोहत आरो लग खुसी के संग भगवान कर भजन करै लग जथै।
यीसु दिन हे बिनती भवन हे संदेस दे करथै अउ रात हे जैतून नामक डोंगर छो रहै करथै।
तब यीसु बाहिर निकरके, अपन रीति के जसना जैतून डोंगर छो बिनती करै जथै अउ चेला ओखरै पाछू हुइ लेथै।
एखर बाद यीसु चेलन के बैतनिय्याह गांव तक लइ गइस अउ ऊ अपन हाथ उठायके उनही आसीस दइस।
फेर चेला जैतून नाम डोंगर लग जउन यरुसलेम लग करीबन अक कोस के दुरिहां हे हबै, यरुसलेम छो लउट आथै।