26 मालिक कथै, जेखर लिघ्घो हबै, उके अउ मिलही, जेखर लिघा हबै, वहु के लइ ले जही।
काखे जेखर लिघ्घो हबै, उके अउ दय जही अउ ओखर लिघ्घो बोहत हुइ जही, पय जेखर लिघ्घो नेहको हबै, ओखर लग वहु लइ ले जही जउन ओखर लिघ्घो हबै।
इहैनिता मै तुम्हर लग कथो, भगवान कर राज तुम्हर लग लइ ले जही अउ असना मनसेन के दइ दे जही, जउन ओखर सही फडुहा लइहीं।
काखे जउन कोनो के लिघ्घो हबै, उके अउ मिलही, जेखर लिघ्घो नेहको हबै, ओखर लिघ्घो जउन कुछु हबै, उहो के लइ लय जही।”
ता ऊ भन्डारी मनै मन सोचै लग जथै, अब मै काहिन करव? मालिक मोर लग भन्डारी के पद छीनथै, माटी खोदै के मोर हे बल नेहको आय, भीख मांगै हे मोके लाज लागथै।
उन कथै, मालिक ओखर लिघ्घो ता आगू लग दसठे खोटन्ना हबै।
“यीसु कथै, एखर लग चवकस रहा, कि तुम कउन मेर सुनथा, काखे कि जेखर लिघ्घो हबै, उके अउ दय जही अउ जेखर लिघ्घो कुछु नेहको हबै, ओखर लिघ्घो लग वहु लइ ले जही जेही ऊ अपन समझथै।”
काखे भजन संहिता कर किताब हे लिखररे हबै, कि ओखर घर उजड जाय अउ ओहमा कउ झइ रहै, ओहमा असना लिखवरे हबै, ओखर सेबा के जिघा कउ अउ के मिलै।
खुद के चेतन्त करा, असना झइ होय कि जउन मेहनत हम करे हबन ओही तुम गवांदा, पय ओखर परतिफल पइहा।
तुम्हर लिघ्घो धीर हबै तुम मोर नाम के कारन दुख सहे हबा अउ हार नेहको माने।
मै हरबी आमै बाले हव, जउन सिक्छा तुम्हर लिघ्घो हबै ओहमा बने रइहा, जेखर लग कउ तुम्हर मुकुट के झइ छंडाय पामै।