“हे ढोंगहा गुरू अउ फरीसी तुमही लानत हबै, तुम मनसेन के निता स्वरग राज कर दूरा के बन्द करथा, न खुद ओहमा घुसथा अउ न उनही जाय देथा, जउन जाय के निता परयास करथै।”
जब तुमही अपन आंखी के किरकिरी नेहको दिखथै, ता अपन भाई लग कसके कहि सकथस, भाई आ मै तोर आंखी के किरकिरी निकाड दो? अरे ढोंगहा पहिले अपन आंखी के किरकिरी के निकाड तब तै अपन भाई के किरकिरी के निकाडै के निता निक्खा देख सकिहे।