43 धन्य हबै ऊ हरवाह, जेखर मालिक लउटै लग उके असना करत पइ।
धन्य हबै ऊ हरवाह, जेखर मालिक लउटत हे उके ओसनेन करत पाय।
धन्य हबै ऊ हरवाह जेही मालिक आयके जगे हर पइ, मै तुम्हर लग सही कथो, ओखर हरवाह बन्डी पहिरके उके खाना के निता बइठाही अउ खुदय उके खाना पोरसी।
यीसु कथै, कोनहर असना समझदार अउ दिमाक बाले हबै, जेखर मालिक अपन हरवाह के उप्पर सही टेम, पय ग्यानी भन्डारी कोनहर हबै, जेही ओखर मालिक अपन हरवाह अउ हरवाहिन के चुने हबै, ताकि सही टेम हे उनही भोजन के समान देय।
मै तुम्हर लग सही कथो, ऊ हरवाह के अपन सगलू धन डेरा लग अधिकारी बनाही।
इहैनिता, हे पिरिया भाई अउ बेहन, जब तुम ऊ रोज के ओरगे हबा, ता परियास करा कि परभु के नजर हे पवितर अउ निरदोस पाय जा, अउ तुम्हर हे ओखर सान्ति के निबास होय।