इहैनिता मै तुमही गुठेथो, कि मै तुम्हर लिघ्घो ग्यानी मनसे अउ दिमाक बाले अउ गुरू के पठोहूं, तुम उन मसे कुछ के मार डरिहा अउ बोहतन के क्रूस हे टंगइहा अउ कुछ के अपन मंडली हे कोडा मरिहा अउ सहर-सहर हे मारत फिरिहा।
मै तुम्हर लग कथो, चिन्ता झइ करा अउ न अपन जीवन चलामै के निता कि हम का खइ या का पी अउ न अपन देह के निता कि हम का पेहनी। का जीवन खाना लग अउ का देह के खुरथा पइजामा लग बढके नेहको हबै?