43 हे फरीसी मनसे तुम्हर उप्पर हाय काखे तुम बिनती भवन हे निक्खा आसन ढूंढथा, अउ बाजार हे मनसे दवारा नमस्ते पसंद करथा।
पय हइ पुरखा के बरोबरी केखर लग करव? ऊ बजार हे बइठके उन लरकन के जसना हबै जउन अक दूसर लग पुकार के कहत हबै,
नियाव के गुरू मनसे लग चेतन्त रइहा, उनके लम्बा-लम्बा खुरथा पइजामा ओढ के फिरै के निक्खा लगथै, ऊ बाजार हे मनसेन लग नमस्ते लेत फिरत हबै, उनके सभा सम्मेलन हे आगू के जिघा अउ दावत हे निक्खा जिघा पसंद करथै।
भाई-भाई हे जसना माया होथै, ओसनेन अक दूसर लग माया रखा, अपनै हे अक दूसर के इज्जत करा अउ अक दूसर लग बढ चढके करा।
खुदय के अच्छाई के निता कुछु झइ करा, बलुक नम्र बना अउ दूसर के अपन लग निक्खा समझा।
मै मंडली के अक्ठी चिट्ठी लिखे रहों, पय दियुतिरफेस जउन उहां के नेता बनै चाहथै, हमके अपनामै के निता तइयार नेहको हबै।