35 इहैनिता हइ बात के सुरता करा, कि जउन उजियार तुम्हर हे हबै, ऊ अंधियार झइ हुइ जाय।
देह के चिमनी आंखी हबै, इहैनिता अगर तुम्हर आंखी निक्खा हबै, ता सगलू देह उजेड होही।
तुम्हर आंखी तुम्हर देह के चिमनी हबै, अगर तुम्हर निक्खा आंखी हबै, ता तुम्हर सगलू आंखी उजियार रही, पय अगर तुम्हर आंखी खराब हुइ जइ, ता तुम्हर सगलू देह अंधियार हुइ जही।
अगर तुम्हर सगलू देह उजियार हे हबै अउ ओखर कोनो देह हे अंधियार नेहको हबै, ता ऊ सगलू जिघा उजियार दइ, जसना अक्ठी चिमनी जलाय लग तुमके उजियार करथै।”
ऊ अपनै के हुसियार मानके मूरुख बन गइन।
जउन मनसे हे हइ गुन मउजूत नेहको हबै ऊ अन्धरा हबै, ढटेवत फिरथै, काखे ऊ बिसर जथै, कि ओखर पुरान पाप धोबर के सुध्द हुइ चुके हबै।
उन घमंड लग भरे हर बेकार बातन लग उन मनसे देह के अभिलासा हे फसाय लेथै। जउन रास्ता लग भटके मनसेन मसे बाल-बाल बच के निकर आय हबै।
तै कथस कि मै धन्नड हुइ गय हव अउ मोके कउन चीज के कमी नेहको, पय तोके पता नेहको हबै कि तै अभागा हबस, बेकार हबस बिना के दीन हबस, अंधरा अउ लंगडा हबस।