14 तुम नेहको जानथा कि कल तुम्हर का हालत होही। तुम्हर जीवन अक्ठी कोहिटा मेर हबा, ऊ अक घरी देखही फेर उजाय जही।
जउन धनी मनसे हबै, उनके खुस रहै चाही, काखे ऊ जंगली चारा के फूल मेर नास हुइ जही।
काखे सगलू देह चारा मेर, अउ ओखर सोभा पतेरन के फूल के जसना हबै, चारा मुरझाय जथै, फूल झड जथै।
ऊ टेम निकट हबै जब सब कुछ बढाय जही, इहैनिता समझदार बना अउ धीर धरा, जेखर लग तुम पराथना बिनती के सका।
दुनिया अउ ओखर लालच दोनो खतम होथै, पय जउन भगवान के इक्छा पूर करथै ऊ जुग-जुग तक बने रथै।