13 जब तक “आज” के रोज कहाथै, तुम सबरोज अक दूसर के उकसाउत रइहा, जेखर लग कउ पाप के जाल हे पड के कठोर झइ बन जाय।
उहां पहुंच के अउ भगवान कर अनुगरह के देखके मगन होथै अउ सगलू के सिक्छा देथै, कि तन मन लगाय के परभु लग लिपटे रइहा।
काखे पाप आदेस लग फायदा उठायके मोके नर दइस अउ मारो दइस।
अपन पुरान चाल चलन के जीवन के छांड दा जउन भरमामै बाले अउ अभिलासा धोखा के चाहत लग बिगडत हबै।
तुमही इहो पता हबै कि बाफ के जसना हम कउन मेर तुम मसे हर अक्ठी के संदेस देत अउ तुमही खुस करत तुम्हर निता बिनती करत रहन, जसना बाफ अपन लरका के निता करथै।
हइ बातन के दवारा अक दूसर के धीर अउ सान्ति दय करिहा।
इहैनिता तुम जसना हइ टेम करतेन हबा, अक दूसर के सान्ति देया अउ अक दूसर के उन्नत करै हे लगे रइहा।
बचन परचार करत टेम निक्खा या बेकार हरमेसा तइयार रहा, बडा धीर लग अउ सिक्छा दे के उदेस्य लग मनसे के समझाबा, गधार अउ प्रोत्साहन करा।
हे भाई अउ बेहन, मै तुम्हर लग बिनती करथो कि हइ संदेस के बात के धीर लग सह लइहा, काखे मै बोहत सरल हे चिट्ठी लिखे हव।
पय हर मनसे अपनै अभिलासा हे फसके परिक्छा हे पड जथै