जब कबहुन तुम उपास करथा, ता ढोंगहन के जसना तुम्हर मुंह उदास झइ रहै अउ उन अपन मुंह के इहैनिता उतारै रथै, ताकि दूसर मनसे उनखर उपास के जानै, मै तुम्हर लग सही कथो, कि अपन फडुहा पाय चुके हबै।
जउन कउनो रोज के मानथै, ऊ परभु के निता मानथै, जउन खथै, ऊ परभु के निता खथै, काखे ऊ भगवान के धन्यबाद करथै, अउ जउन नेहको खथै, ऊ परभु के निता नेहको खथै, अउ भगवान के धन्यबाद करथै।
तुम आदेस मान के सत्य के गरहन करे हबा अउ हइ मेर बिना कपट के हरमेसा माया के निता अपन आतमा के पवितर के लय हबै, इहैनिता अब तुमही सुध्द हिरदय अउ तन-मन लगाय के अक दूसर लग माया करै चाही।