13 सुस्ताय कर रोज हम सहर के फेरका के बाहिर नदिया के पाखा हइ समझ के जथन कि उहां बिनती करै के जिघा होही अउ बइठके उन डउकी लग जउन अक जिघा रथै, बात करै लागथै।
जब हम बिनती करै के जिघा हे गयन, ता हमके अक्ठी जबान हरवाहिन मिलथै जेहमा आगू कर बात गुठे बाले आतमा रथै अउ भभिस्य गुठेवै लग अपन मालिक कर निता बोहत कुछ कमाथै।
पय उहां रुकय के अपन टेम पूर करके हम बिदा लयन अउ अपन यातरा पूर करथै, अपन डउकी अउ अपन लरकन के लइके नगर के बाहिर आइस उहां सागर हे घुटवा के बल झुक के बिनती करन।
पय तुमके बिस्वास के नीह हे मजबूत अउ अडे बने रहे चाही अउ ऊ आसा लग नेहको भटके चाही, जउन तुमके संदेस के दवारा देबाय गय हबै, ऊ परचार बादर के तरी सगलू रचना के सुनाय गय हबै अउ मै पोलुस ओखर सेबक बने हव।