17 उन मनसे सुखाय हर कुंवा अउ आंधी दवारा उडाय हर कोहिटा हबै, जिनखर निता गहिड अंधियार ठहराय गय हबै।
ता राजा अपन हरवाहन लग कथै, एखर हाथ गोड के बांध के, उके बाहिर अंधियार हे फटक देया, जिहां हइ रोइ अउ दांत चबाही।”
इहैनिता हइ ढिलवा हरवाहन के बाहिर के अंधियार हे फटिक देया, जिहां मनसे रोथै अउ दांत पीसथै।”
पय जेही मोर राज हे होमै चाही, उनही अंधियार हे डाल दय जही, जिहां रोइहिन अउ दांत पिसहिन।
तब हम लरका नेहको रहिबे, जउन मनसे के नरै बाले नियम अउ चतुर लग उनखर भरमामै बाले सक्ति के अउ संदेस के हर अक्ठी झोका लग उछालै अउ इछो-उछो बहकाय झइ जउबे।
तुम ऊ डोंगर के लिघ्घो नेहको पहुंचे हबा, जेही तुम छू सका, इछो न तो धंधकत आगी हबै अउ न करिया बादर, न बोहत अंधियार अउ न आंधी बडेरा,
जब भगवान उन पापी स्वरगदूतन के माफ नेहको करिस, बलुक उनही नरक के अंधियार कुन्ड हे नियाव के रोज के निता सांकड हे बांध दय हबै।
फिर जउन स्वरगदूत अपन पद के बनाय नेहको रखिस, पय अपन निबास हक के छांड दइस, ऊ उनके ऊ भयानक नियाव के रोज के निता अंधियार हे जउन सबरोज के निता हबै बन्धन हे रखे हबै।