सही हइ हबै कि ई घर हे रहत भरमा हम भार हे दबे हर दुख हे रथन, काखे हम चाहथन कि हम बिना कपडा के नेहको रही, पय कपडा पहिरी कि जउन कुछ सारीरिक हबै ऊ जीवन के निरवाह बन जाय।
हइ ऊ रोज होही जब परभु अपन पवितर मनसेन के बीच महिमा के संग परगट होही अउ उन सब हे चकित के कारन बन जइही, जउन बिस्वास करे हबै, काखे तुम हमर गवाह हे बिस्वास करे हबा।
भगवान उनखर आंखी लग हर अक्ठी आंसू पोंछ डालही अउ उहां अब न कबहुन मिरतू होही, न सोक के कारन कउ रइहिन अउ न कउनो पीरा, काखे हइ सगलू पुरान बात समापत हुइ चुके हबै।”