16 कहतै, “धिक्कार, धिक्कार, हे महानगरी, मलमलके असल बस्तर, बैजनी आ चमकदार लाल बस्तर लग्याके सोना, बहुमुल्य रत्न आ मोतिके गहनासे सिङारल छेलै।
तब हम पबितर आत्मासे भरलियै आ स्वरगदुत हमरा उजार जगहमे ल्यागेलै। ओते हम लाल रङके जानबरके उपरमे एकटा जनीके बैठल देखलियै। उ जानबरके सातटा मुरी आ दसटा सिङ छेलै आ ओकर पुरे देहमे परमेस्वरके निन्दा करैबला नामसब लिखल छेलै।
उ जनी बैजनी आ लाल रङके बस्तर लगाइने छेलै आ सोना, बहुमुल्य रत्न आ मोतिसबके गहना-गुरियासे सिङगारल छेलै। ओकर हाथमे सोनाके एकटा बाटी छेलै आ ओइमे बेबिचारके घिनलागैबला असुध चिजसबसे भरल छेलै।
तब उ सहर जैरके निकलल धुवाँ देखके एहैन कहैत जोरसे कहल्कै, “यि महानगरी जखा त कोनो सहर नै छेलै।”
तब उसब आपन-आपन मुरीमे गरदा राख्तै आ कानैत कहतै, “धिक्कार, धिक्कार, उ महानगरीके धन-सम्पतीसे पानी जहादके मालिकसब धनिक भेल छेलै। एके छनमे उ सहर नास भेलै।”