‘कथिलेत यि लोकसबके मन कठोर भ्यागेलछै आ ओइ लोकसबके कान बैहर भ्यागेल्छै, उसब आपन आँख मुइन लेने छै, नै त उसब आँखसे देखतियै, कानसे सुनतियै आ मनसे बुझतियै आ घुइमके हमरलग एतियै आ हम ओइसबके निक करतियै।’
कथिलेत साँचे हम तोरासबके कहैचियौ, जबतक स्वरग आ पिरथिबी खतम नै हेतै तबतक बेबस्थामे लिखल बात बिना पुरा भेने छोटसे छोट बुन्का ओकर एकोटा आछर तक नै बुताइतौ।
कथिलेत यि लोकसबके मन कठोर छै, ओकरसबके कान बैहर भेल छै, तब उसब आपन-आपन आँख बन कैरलेने छै! नै त उसब देखतियै, सुनतियै आ मनसे बुझतियै, तब उसब मन फिराके हमर दिसन घुइमके एतियै आ हम ओकरासबके तन्दरुस्त बनाइतियै।”