1 हे अमीर लुखुं सूंणा; तुम अफ पर औंण वली मुसिबत पर चिल्लै-चिल्लै कै रुवैल्या।
1 हे सेठ लोगु, सुणा, तुम अफ पर औण वळी मुसीबतों तैं देखि के वे पर चिल्लै-चिल्लै के रुविल्या।
जब सूरज निकलद अर तेज घाम पुड़दो त घास सुखै दींद, अर वेका फूल झड़ी जंदींनि, अर वेकी सुंदरता नष्ट हवे जांदी; उन ही धनवान आदिम भि धन कमौन्द-कमौन्द मोरि जालो।
पर तुम ल वे गरीब को अपमान कैरी। तुम खुद भि यु जणदां छा, कि अमीर लोग ही छिनी जु तुम पर जुल्म करदींनि, अर जबरदस्ती कचहरियों की जांच मा ली जणदींनि।
तुम जु इन बुलद्यां, “आज या भोल हम कै और नगर मा जै के उख एक साल बितौला, अर व्यापार कैरी कै फैदा उठालो।”
अपड़ा पापों का कारण दुखी व, अर दुःख कैरा, अर रवा, तुम्हरी हंसी दुःख मा अर तुम्हरी खुशी उदासी मा बदली जौं।