1 कुरिन्थि 15:32 - गढवली नयो नियम32 इफिसुस शहर मा, मेरा दुश्मन भींगरियां जानवरों का जन छिनी, जु मि तैं नुकसान पौछांण चयदींनि; मि अभि भि यु सब किलै सैणु छों, जु मेरू प्रतिफल ईं दुनिया कु छै ही च, जु यु सच हूंदो, कि मि तैं आखरी दिनों मा फिर से ज्यूँदो नि किये जालो, त मि कु बढ़िया हूंद, कि मि मौज उड़ांदू, जन कि य मिसाल च, “आवा हम खां-पयां किलैकि शायद भोल हम मोरि जां अर हमारो अंत हवे जौं।” အခန်းကိုကြည့်ပါ။Garhwali32 अर इफिसुस नगर का लोगु न मेरु बड़ु विरोध कैरी, अर ऊ मि पर जंगळि जानबर की तरौं कटणु कू ऐनी। अर अगर मुरयां लोगु तैं ज्यून्द नि किये जालु, त विरोध करण वळा लोगु का खिलाप मा जु कुछ भि मिन कैरी, वेको कुई फैदा नि ह्वे। तब हम भि इन बोलि सकद्यां कि, “अरे भोळ त हमुन भि मुरण ही च, चला, हम सब खूब खा-प्या।” အခန်းကိုကြည့်ပါ။ |
मेरा द्वारा गुलामी कु विचार कु इस्तेमाल कनु को कारण यु च कि जु मि तुम तैं सिखांणु छों वे तैं तुम आसानी से समझी साका। जन तुम ल अपड़ा देह का अंगों तैं मनिख्युं कु अधर्म का कारण अपवित्र अर कुकर्म का गुलाम कैरी कै सौपैले, उन ही अब अपड़ा अंगों तैं पवित्रता कु धर्मी जीवन जींणु कु गुलाम कैरी कै सौंपी द्या।