21 आतुरले अँश किंबै म्हिए सै न्होर लिउँइँ तोइ केर आफे।
छ्याँबै म्हिइ ह्रोंसए क्वें-क्वेंमिमैंए ल्हागिर सै न्होर पिंथेंम्, दिलेया पापिमैंए सै न्होर ठिक के लब्मैंए योर फेनेम्।
ह्रोंसए आबा आमाए फिर सराप झोंस्याँ क्हिए बत्ति मिछु खैबै त्हेर सैवाब्मुँ।
“क्हिइ ङए न्होह्रों लइ, छतसि ङज्यै या क्हिए न्होह्रों लम्,” आबिद्; दिलेया याहवेहए फिर भर थेंन्, खीजी क्हिलाइ जोगेमिंब्मुँ।
छलु म्हिलु लसि तोबै सै न्होर उडियाबै म्हस्यो नेरो कालए ङो ग।
प्लब् तबर क्हिइ दु:खले के आलद्; ह्रोंसए बुद्धिइ तोइ के आलद्।
भर लल् खाँबै म्हिए फिर ल्हें आशिक युब्मुँ, दिलेया युनन् प्लब् तदा ङ्हाँबै म्हिइ दण्ड योंब्मुँ।
पिंल् आचैबै म्हि प्ल्ब् तदा ङ्हाँमुँ, दिलेया ङ्हाँदु तदै ह्याब चइ आसे।
ब्याज ल्हें किंसि ह्रोंसए सै न्होर ल्हें लबै म्हिइ ङ्हाँदुमैंए फिर ल्हयो खबै म्हिए ल्हागिर सै न्होर खुम्!
दिलेया प्लदा ङ्हाँब्मैंइ तब आतबर दुःख योंम्, चमैं आङिं-आङिं तबै सैजरे पानेम्, केरै आफेबै छेरन् तबै सै जरे सैं ह्याम्, छाबै सैमैंइ म्हिमैं तोइ आचैन् लवाम्।