30 इसहाकइ याकूब आशिक पिंल् खाँबै लिउँइँ याकूब ह्रोंसए आबाउँइँले ह्याबै तोदोंन् चए आघें एसाव हेउँइँले फो सैसि युइ।
निम्रोद याहवेहए उँइँर बेल्ले छेनाले शिकार क्ल्योंल् ह्रमल। छतसि “चु म्हि निम्रोद धोंले बेल्ले छेन्ले शिकार क्ल्योंल् ह्रबै म्हि मुँन!” बिसि अहान् चल्दिइमुँ।
ह्रें-ह्रेंर्बै म्हिमैं क्हिए केब्छैंमैं तरिगे, चमैंइ क्हि फ्योरिगे। क्हिए आघेंमैं-अलिमैंए फिर क्हि क्ल्हे तरिगे, झाइले क्हिए आमाउँइँले योंबै सन्तानमैं क्हिए ओंसों कुररिगे। क्हिए फिर सराप झोंब्मैं ताँनइ सराप योंरिगे, झाइले क्हिए फिर आशिक पिंब्मैं ताँनइ आशिक योंरिगे।”
चज्यै बेल्ले लिंबै से ट्हा तेसि ह्रोंसए आबा ङाँर पखसि बिइ, “आबा, रेसि क्हुँन्। ङइ पखबै से ट्हा चसि ङए फिर आशिक पिंन्।”
लिउँइँ क्रोदै चइ चए आबाने आशिक ह्रिइ दिलेया आबाउँइँले चइ आशिक आयों। तलेबिस्याँ चइ पछुत ललेया च्ह थेबाइ योंबै हग ओंसोंन् चब् तिछोने त्हेवाल। चु ताँ क्हेमैंइ सेइमुँ।