29 छ लस्याँ ङिए फिर क्हिइ आछ्याँब लरिब् आरे। ङिज्यै या ङिए ह्युलउँइँले क्हिलाइ तोइ आलल्ले छेनालेन् कुल्मिंल। क्हि याहवेहए आशिक योंबै म्हि मुँन।”
ङइ क्हिउँइँले थेबै ह्रें लमिंब्मुँ, धै क्हिलाइ आशिक पिंसि। क्हिए मिं कालिदिब् लमिंब्मुँ, झाइले क्हि आशिकए मुल तब्मुँ।
क्हिए फिर आशिक पिंब्मैंलाइ ङइ आशिक पिंब्मुँ, क्हिए फिर सराप पिंब्मैंलाइ ङइ सराप पिंब्मुँ। क्हिउँइँलेन् पृथ्बीर्बै ताँन् म्हिमैंइ आशिक योंब्मुँ।”
च त्हेर अबीमेलेक म्रुँ नेरो चए सेनापति पिकोलइ अब्राहामने बिइ, “क्हिइ लबै तोन्दोंरि केर परमेश्वरजी आशिक पिंइमुँ।
क्हिए प्हसेमैं बडिसि मुर्बै सारमैं नेरो मा ङ्युँइर्बै बालुवा धोंलेन् ल्हें लमिंब्मुँ। क्हिए सन्तानइ खेंमैंए शत्तुरमैंए सहरमैं क्ल्हे लब्मुँ।
छले ह्यामा क्यु खादुए रेर च म्हि रारिब् म्रोंसि लाबानइ बिइ, “ओ याहवेहए आशिक योंबै म्हि, धिं न्होंर खो। तले बैरु रारिल? ङइ क्हिए टिबै क्ल्ह्यो नेरो सलुमैंए क्ल्ह्यो लथेंइमुँ।”
स्वर्क नेरो पृथ्बी बनेबै याहवेहउँइँले क्हेमैंइ आशिक योंरिगे!