अर झिबलांणो मा पोड़यां बीज का दगड़ा मा जु कुछ भि ह्वे, उ इन च कि कुछ लोग परमेस्वर का वचन तैं सुणदा त छिन, मगर ईं दुनियां मा जीवन की चिन्ता-फिकर, अर धन-दौलत को लालच वे वचन तैं दबै देन्दिन, इलै वे पर फल नि लगदिन।
इलै चौकस रा, कखि तुम भि दुनियां का भोग-बिलास मा, दरोळया होण मा, अर जीवन की चिन्ता-फिकर कैरिके अपणा मन तैं यों बातों का भार से दबै नि द्या। अर वु दिन एक जाल की तरौं तुम पर अचानक से ऐ जालु।
अर जु बीज झिबलांणो मा पोड़ीनी, ऊ वु लोग छिन जौन वचनों तैं सुणी, मगर अगनै चलि के जीवन की चिन्ता-फिकर मा, अर धन-दौलत मा, अर मौज-मस्ती मा फंसी जनदिन, अर ऊ बिस्वास मा मजबूत नि होनदिन।