ईं बात का बाना कुछ फरीसी बुलण लगि गैनी कि, “यू मनखि परमेस्वर की तरफा बटि नि अयूं, किलैकि यू सब्त का दिन तैं मणदु ही नि च।” पर दुसरा लोगु न बोलि, “कुई पापि मनखि इन चिन्न-चमत्कार कनकै कैरी सकदु?” इलै ऊं लोगु का बीच मा फूट पोड़ि गै।
किलैकि सबसे पैलि बात त या च, कि मिन तुमरा बारा मा इन सुणी कि जब बिस्वासी लोगु को समुदाय इकट्ठा होन्दु, त लोग अपणा आपस मा दल बणौणा छिन। अर जु कुछ भि मितैं पता चलि वामा बटि कुछ-कुछ बातों पर मितैं यकीन च।
किलैकि तुम अभि भि दुनियां की बातों का मुताबिक ही चलद्यां। अर या बात मि इलै बोन्नु छौं, किलैकि तुम लोग एक-दुसरा तैं देखि के खार खन्द्यां अर तुमरा बीच मा झगड़ा भि होनदिन। त अब तुम मितैं इन बता क्या फिर तुम दुनियां का लोगु का जन नि छाँ? अरे, तुम त ऊंका जन ही चाल चलणा छाँ।