1 हे सेठ लोगु, सुणा, तुम अफ पर औण वळी मुसीबतों तैं देखि के वे पर चिल्लै-चिल्लै के रुविल्या।
1 हे अमीर लुखुं सूंणा; तुम अफ पर औंण वली मुसिबत पर चिल्लै-चिल्लै कै रुवैल्या।
फिर जब सूरज निकळदु अर चटकतल्यु घाम घास पर पोड़दु, त उ वेतैं सुखै देन्दु। अर वेका फूल झेड़ी जनदिन, अर वेकी सुन्दरता नास ह्वे जान्दी। ठिक उन्नि सेठ मनखि भि धन कमौन्द-कमौन्द एक दिन माटा मा मिली जान्दु।
पर ऊं गरीबों को अपमान तुमुन कैरी। अर जौं सेठों को तुमुन आदर-सम्मान कैरी, क्या ऊ तुम पर जुलम नि करदिन? क्या ऊ तुमतै खैंची के कचैरीयों मा नि लि जनदिन?
हे मेरा भै-बैंणो, तुम लोग जु इन बुल्द्यां कि, “आज या भोळ हम फलणा नगर मा जैके एक साल तक उखि रौला, अर व्यापार कैरिके छक पैसा कमौला।”
तुम दुखी ह्वा, अर शोक कैरा अर रुवा। तुमरो हैंसण रुंण मा बदलि जौ, अर तुमरि खुशी दुख मा बदलि जौ।