तूफान औण का बाद जब चौदहवीं रात ऐ, त हम अद्रिया समुन्दर की उथल-पुथल मा इनै-उनै जाणा छा, अर अधि रात का करीब जाज चलौण वळो तैं इन लगि कि हम कै छाला पर पौंछण वळा छां।
अर ऊंतैं डौऽर लगण लगि गै कि कखि जाज चटानों पर टकरै नि जौ, इलै ऊंन पिछनै जैके जाज का चार लंगर पाणि मा डालि दिनी ताकि जाज रुकी जौ। अर वीं रात ऊ प्रार्थना करण लगि गैनी कि बस सुबेर ह्वे जौ।