1 कुरिन्थि 13:4 - Garhwali4 अर जु मनखि दुसरो बटि प्यार करदु वेका भितर सबर, दया अर दुसरा लोगु से प्यार करण को गुण होन्दु। इन्द्रयो मनखि नऽ त दुसरा लोग तैं देखि के जळतेन्दु, नऽ त डींग मरदु, अर ना ही उ बड़ु मोन करदु। အခန်းကိုကြည့်ပါ။गढवली नयो नियम4 जु लोग दुसरा बट्टी प्रेम करदींनि, उ धीरज ल अर दया का दगड़ी काम करदींनि, प्रेम जलन नि करद, अपड़ी बड़ै नि करद। အခန်းကိုကြည့်ပါ။ |
अर हमरु सभौ दिन का उज्याळा का जन हो। हाँ, जन दिन को उज्याळु सभ्यों पर चमकदु, ठिक उन्नि हमरु सभौ भि हो ताकि वेका द्वारा हम सब लोगु खुणि अच्छु सभौ वळा बणि जा। अर नऽ त हमतै मौज-मस्ती करण चयेणी, अर ना ही हमतै नसा करण वळु होण चयेणु। अर नऽ त हमतै गळत सम्बन्ध रखण चयेणा, अर ना भोग-बिलास करण चयेणु, अर नऽ त हमतै कै का दगड़ा मा लड़ै-झगड़ा करण चयेणा, अर ना ही हमतै एक-दुसरा तैं देखि के जलत्यौण चयेणु।
हे मेरा दगड़्यों, अब मि ऊं चीजों का बारा मा बतौण चान्दु, जु कुछ भि मूरत का अगनै चड़ये जान्दु, वीं सच्चै का बारा मा तुम जणदा ही छाँ, अर वेका बारा मा तुम सभ्यों का पास पूरु ज्ञान च। अर अगर तुम कैं चीज का बारा मा जणदा छाँ, त याद रखा कि जादा ज्ञान होण से मनखि का मोन भौत चैड़ि जनदिन, पर अगर जु हम एक-दुसरा से प्यार करद्यां, त यां से एक-दुसरे की तरक्की होन्दी।
अर मितैं ईं बात की डौऽर च कि कखि इन नि हो कि जब मि तुमरा बीच मा औंऽऽ, त जन मि चान्दु तुमतै उन नि पौं, अर जन तुम मिसे चन्द्यां उन तुम मितैं नि पा। अर मितैं इन भि डौऽर च कि तुमरा बीच मा झगड़ा करण वळा, खार खाण वळा, जल्दी नाराज होण वळा, अपणु ही भलु चाणा वळा, बदनाम करण वळा, झूठ्ठी बात फैलाण वळा, बड़ु मोन करण वळा, अर दंगा करण वळा लोग मौजूद छिन।
मेरा दगड़्यों, चौकस रा, कखि कुई मनखि अपणी झूठ्ठी शिक्षा का द्वारा तुमतै पिता परमेस्वर से मिलण वळा इनाम से बेदखल नि कैरी द्यो, किलैकि झूठ्ठु मनखि लोगु तैं दिखौणु खुणि दीन बणदु अर स्वर्गदूतों की पूजा करण की बात सिखौन्दु, अर उ इन जोर देन्दु कि तुम भि ठिक इन्नि कैरा। अर इन्द्रया झूठ्ठा लोग बुलला कि ऊंन पिता परमेस्वर से सुपन्या मा दरसन का द्वारा यू ज्ञान पै, इलै ऊ अपणा विचारों पर बड़ु मोन करदिन, मगर सच्चै त या च कि ऊंका मनों मा यू विचार परमेस्वर की तरफा बटि नि छिन।
अर जु लोग तुमरि शिक्षा को विरोध करदिन, इन्द्रया लोगु तैं तुमतै नमर बणि के सिखौण वळु होण चयेणु, किलैकि विरोध करण वळा यू लोग शैतान की इच्छा तैं पूरि करणु खुणि वेका जाल मा फंस्यां छिन। अर यों लोगु तैं ईं उम्मीद का दगड़ा मा सिखौ, कि क्या पता परमेस्वर यों तैं भि पस्ताप करण को मन दे द्यो, ताकि यू भि सच्चै का ज्ञान तैं समझि जा अर चौकस ह्वेके शैतान का जाल बटि छुटी जा।